Saturday, April 6, 2019

Manavta poem


Manavta poem
  Manavta-poem.

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में इन्सान मशीन बनता जा रहा है। हमेशा मशीनों से घिरा रहता है सोते,उठते, बैठते हमेशा मोबाइल, टीवी, लैपटॉप आदि। उनके पास भावनाएं  खत्म होती जा रही है वो अब लोगों से मिलने-जुलने,एक साथ बैठ के बात करने की बजाय मोबाइल पर ही बात कर लेते हैं। जिससे लोगों के बीच में, रिश्तों में दूरियां आ गयी है। आज लोग भौतिकवादी होते जा रहे हैं।वो अपनो के लिए भी आराम, सुख-सुविधाओं को नहीं छोड़ सकते हैं। आज इन्सान अपने में ही खो सा गया है जिससे लोगों में भावनाओं की कभी होती जा रही है और मानवता की भी।

Manavta-poem
Manavta-poem 

अब क्या कहें किसी को, शब्द निशब्द हो गये
तार तार मानवता है, जो बचे थे खो गये...
बढ़ रहा विज्ञान है खो रही इंसानियत
मशीन से घिरे है यहा, मशीन बनते जा रहे।

वेदो के देश मे अन्धकार बढ़ता जा रहा
है यहा दोहरे नियम लोगों की दृष्टि में
पूजते है देवी को, कोख में हत्या कर रहें।
ये कैसी मानवता, ये कैसा प्रेम है
मॉ के बिना पुत्र नही,बेटी से ही ना प्रेम है।।

संस्कार के देश में, लुट रही अस्मिता यहॉ
रिति-रिवाज से बना समाज, ये कैसा नियम यहाँ
बूढे माँ बाप रो रहे , खुद के घर में ही
हो रहा अपमान उनका, जो है सर्वोपरी यहॉ

वेद शास्त्रो के देश मे है गुरू का भी है स्थान यहाँ
हो रहा अपमान यहॉ, ना मोल कोई अब रहा
बढ़ते हुए देश में , कोई ना किसी का रहा
धितकार है तुझपे , मोल ना किसी का रहा।।
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Manavta-poem
 Manavta-poem

तेरे इस व्यवहार से, प्रकृति भी शर्मा रही
हद पार हो गई अब क्रूरता की यहॉ
शर्म से पर्वत पिघल रहा, मौसम ना बदल रहा
सुन्दर से चमन में देखो, फूल भी मुरझा गये।।

तुझ मे ना बची शर्म, ना लाज तुझमे रह गयी
भाई भाई का कातिल हुआ, मॉ कुमाता बन गयी
स्वर्ग सी धरती पे, विष की हवा बह चली
धितकार है तुझपे ऐ मनुष्य, तू तो जानवर से ज्यादा गिर गया।

ना रहा फर्क कोई तुझमे, ना शैतान मे
इंसान के भेष में देखो, शैतान रह रहा
हुआ विनाश मानवता का, सब कुछ नष्ट हो रहा
देखो ममता हार रही , लालच जीत रहा।

निस्वार्थ रिश्तो मे अब स्वार्थ ही भर गया
हार रहे रिश्ते यहॉ, काम क्रोध लोभ जीत रहा।
अब क्या कहें किसी को, शब्द निशब्द हो गये
तार तार मानवता है, जो बचे थे खो गये....